द गर्ल इन रूम 105
अध्याय 20
'मैं अब भी यकीन नहीं कर पा रहा हूं कि तुमने हमारे लिए एक हाउसबोट बुक की है, मैंने बैगेज बेल्ट से अपना सूटकेस निकालते हुए कहा। कश्मीर की फ़्लाइट पर आधा दर्जन सिक्योरिटी चेक्स के बावजूद हम दोपहर में समय पर श्रीनगर पहुंच
गए थे। शेख-उल-आलम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर यात्रियों से ज्यादा सीआईएसएफ और सेना के जवान मौजूद
थे।
'मेरा यकीन करो तुम्हें वहां बहुत अच्छा लगेगा,' सौरभ ने कहा 'मैं ड्राइवर को बुलाता हूं।' उसने अपना
फ़ोन निकाला और स्क्रीन को देखता ही रह गया।
"क्या हुआ ?' मैंने कहा। 'मेरे फ़ोन में नेटवर्क नहीं है। क्या मैं तुम्हारा फोन इस्तेमाल कर सकता है?" मेरे फोन में भी कोई सिगनल नहीं आ रहा था। हम दोनों ने दो-दो बार अपने फ़ोन को बंद करके फिर से
चालू किया, लेकिन कोई नेटवर्क नहीं मिला।
क्या आपके पास प्री-पेड कार्ड्स हैं?" बैगेज बेल्ट पर हमारे एक सहयात्री ने हमसे कहा। 'हां, सौरभ ने कहा 'मैंने दिल्ली आने पर प्री-पेड कार्ड लिया था और फिर उसके बाद कभी पोस्ट पेड पर
नहीं गया।"
मैं भी, मैंने कहा "वही तो जम्मू और कश्मीर में दूसरे राज्यों के प्री-पेड कार्ड्स काम नहीं करते हैं। सिक्योरिटी रीजन्म।"
हम एयरपोर्ट से बाहर आ गए। हमने एक आदमी को देखा, जो हार्ट के आकार का प्लाकार्ड लेकर खड़ा था
और उस पर हमारा नाम लिखा था। 'सीरियसली, सौरभ? मैंने कहा। 'ग्रेट सर्विस, है ना?' उसने कहा।
हम एयरपोर्ट रोड के उत्तर में सिटी सेंटर की ओर जा रहे थे। एयरपोर्ट की बिल्डिंग से बाहर निकलते ही हमें अपने आसपास पहाड़ नजर आने लगे। अप्रैल का सूरज बर्फ से लदी पहाड़ी चोटियों को चमका रहा था। लेकिन जब हम सेंटर में पहुंचे तो यह भारत के किसी भी नॉन-मेट्रो शहर जैसा लगने लगा। सब तरफ कोल्ड ड्रिंक्स, सेल फोन्स, अंडरवियर और एंट्रेंस एग्ज़ाम कोचिंग क्लासेस के होर्डिंग्स लगे हुए थे। मेरे ख्याल से भारत यही है। अपने
कम्फर्टेबल अंडरवियर में जमकर पढ़ाई करो, फोन चलाओ और कोक पीओ। फिर, यही सब दोहराते रहो।
"यह तो भारत के दूसरे शहरों जैसा ही लग रहा है, ' सौरभ ने कहा।
★ यह भारत ही है, मैंने कहा।
'लेकिन इन लोगों का अलग झंडा और अलग संविधान है ना?'
मैं ड्राइवर की ओर इशारा करते हुए होंठों पर उँगली रख दी। मैंने सुन रखा था कि कश्मीर में राजनीति के बारे में किसी भी तरह की बात करना मुसीबत को न्योता देना ही होगा। और मुझे इस समय मुसीबत की नहीं, हमारे मोबाइल फोन के ठीक से काम करने की ज़रूरत थी।